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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड में बाहर से आए भू माफिया का खेल, प्रशासन की नाकामी या सत्ता की शह?

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, अब भू माफियाओं के गढ़ में बदलता जा रहा है। हरियाणा से आया एक भू माफिया सतीश कुमार, देहरादून में मुख्यमंत्री निवास के करीब,उत्तराखंड में जमीनों की खरीद-फरोख्त के अवैध धंधे में लगा हुआ है। यह भू माफिया अलग-अलग इलाकों में जमीनें कब्जा कर कॉलोनी और निर्माण कार्यों को संचालित कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि वह सत्ता की आड़ में कानून को ठेंगा दिखाते हुए अपने काले कारनामों को अंजाम दे रहा है।

महिला पुलिसकर्मी की जमीन पर कब्जा और लाखों की ठगी

हल्द्वानी के पास सतीश कुमार ने एक रिटायर्ड महिला पुलिस कांस्टेबल की जमीन को लीज पर लिया। लेकिन उसने लीज के नाम पर धोखा देते हुए जमीन पर कब्जा जमा लिया। यही नहीं, महिला के रिटायरमेंट के दौरान मिली लाखों रुपये की रकम को भी इस माफिया ने ठग लिया। यह घटना बताती है कि सतीश कुमार जैसे माफिया किस तरह कमजोर और भरोसेमंद लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं।

सत्ता की आड़ में खुलेआम ब्लैकमेलिंग

सतीश कुमार खुद को सत्ताधारी नेताओं के करीब बताकर जमीन के मामलों में दबंगई दिखाता है। वह जमीन पर बयाना देकर कानूनी अड़ंगे डालता है और फिर मालिकों को ब्लैकमेल करता है। पीड़ित परिवार उसकी राजनीतिक पहुंच और दबदबे के आगे चुप रहने को मजबूर हो जाते हैं।

देवभूमि में बाहरी माफियाओं की घुसपैठ

हरियाणा से आया यह माफिया अकेला नहीं है। खबरें हैं कि बाहरी राज्यों के कई लोग उत्तराखंड में जमीनों पर अवैध कब्जा कर रहे हैं। इन माफियाओं की करतूतों के कारण न केवल स्थानीय लोगों को नुकसान हो रहा है, बल्कि उत्तराखंड की शांति और पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है।

प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब कुछ मुख्यमंत्री कार्यालय के करीब हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशासन और सरकार इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? क्या यह सत्ता के संरक्षण का मामला है, या फिर प्रशासन की नाकामी?

भू माफियाओं पर नकेल कब कसेगी सरकार?

उत्तराखंड के लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसे भू माफियाओं के खिलाफ सरकार कब कार्रवाई करेगी। क्या देवभूमि को इन बाहरी माफियाओं के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाएगा, या फिर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इनपर लगाम लगाएगा?

उत्तराखंड की जनता को अब न केवल सवाल उठाने की जरूरत है, बल्कि जवाब मांगने की भी। सरकार और प्रशासन को स्पष्ट करना होगा कि वे किसके पक्ष में खड़े हैं – जनता के या इन भू माफियाओं के?

 

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